तेरे कर्मों का प्रतिफल है
तेरे कर्मों का प्रतिफल है,
पंखों का बिछौना है ।
प्रकृति के समक्ष मानव,
तू आज भी बौना है।।
लालच में पूर्णता की ,
क्या क्या ना तू कर डाला।
पर बिना मनुष्यता के,
तू आज भी पौना है।
माना कि ताप,शीत,
सभी पर है वश अब तेरा।
पर सामने कुदरत के,
तू छोटा सा खिलौना है।
बहुत क्रूरता से तूने ,
हर फूल मसल डाला ।
अब काटे बचे हुए हैं ,
कांटो का बिछौना है।
सामर्थ्य मिला तुझको,
कि तू कल्याण कर सभी का।
कभी देख आईने में,
तू कितना घिनौना है।
-विजय वर्मा
25-03-2020
तेरे कर्मों का प्रतिफल है
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
on
1:41 AM
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ReplyDeleteआज के परिवेश पर सटिक रचना
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