First session 46
यूँ ही कभी किसी मोड़ पर,
जो लड़खड़ाये पैर फिर से।
जो बन गये ताबीज थे,
झट हो गये सब गैर फिर से।
उलझे हुए सम्बन्ध हैं सब,
स्वार्थवश अनुबन्ध हैं सब;
मन उचट गया इस भीड़ से,
और कर लिया ये बैर फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-46)
01-04-2017
जो लड़खड़ाये पैर फिर से।
जो बन गये ताबीज थे,
झट हो गये सब गैर फिर से।
उलझे हुए सम्बन्ध हैं सब,
स्वार्थवश अनुबन्ध हैं सब;
मन उचट गया इस भीड़ से,
और कर लिया ये बैर फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-46)
01-04-2017
First session 46
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
on
2:04 PM
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