फिर से -48
छोड़ किताबें कागज वाली,
सीख समय को पढ़ना फिर से।
बाधायें तो भ्रम हैं मन का,
पल प्रतिपल बस बढ़ना फिर से।
कर्म को,अपनी कलम बना कर,
श्रम से,अपना भाग्य लिखा कर;
जिस से मन विह्वल हो जाये,
उन स्वपनो को गढ़ना फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-48)
02-04-2017
सीख समय को पढ़ना फिर से।
बाधायें तो भ्रम हैं मन का,
पल प्रतिपल बस बढ़ना फिर से।
कर्म को,अपनी कलम बना कर,
श्रम से,अपना भाग्य लिखा कर;
जिस से मन विह्वल हो जाये,
उन स्वपनो को गढ़ना फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-48)
02-04-2017
फिर से -48
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
on
2:13 PM
Rating:
कर्म ही कलम है ये बात समझ आ जाये तो जीवन सफल है ... सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDelete