फिर से-43
दूर तलक बस दिखायी देती,
उदास मन की कतार फिर से।
कीमत लग रही इन्सानो की,
शबाब पर है बाजार फिर से।
सभी तरह की सजी दुकाने,
टंगी खूटियों पर मुस्काने।
जिसकी भारी जेब,ले जाये,
छलकता आँखो का प्यार फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-43)
11-03-2017
उदास मन की कतार फिर से।
कीमत लग रही इन्सानो की,
शबाब पर है बाजार फिर से।
सभी तरह की सजी दुकाने,
टंगी खूटियों पर मुस्काने।
जिसकी भारी जेब,ले जाये,
छलकता आँखो का प्यार फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-43)
11-03-2017
फिर से-43
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
on
7:17 PM
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