फिर से-42
समय नही अनुकूल हो तो भी,
कर्म को बना के ढाल फिर से।
अगर पसीना उगे बदन पर,
उसे मोतियों मे ढाल फिर से।।
जब मन करने पर आ जाये,
बाधा रज कण बन बिछ जाये;
साहस का फिर ज्वार उठे और,
भय हो जाये निढाल फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-42)
02-03-2017
कर्म को बना के ढाल फिर से।
अगर पसीना उगे बदन पर,
उसे मोतियों मे ढाल फिर से।।
जब मन करने पर आ जाये,
बाधा रज कण बन बिछ जाये;
साहस का फिर ज्वार उठे और,
भय हो जाये निढाल फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-42)
02-03-2017
फिर से-42
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
on
4:49 PM
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