फिर से
ना जाने कैसे उग आयी,
दिल के दरमियाँ दीवार फिर से।
झुकती सी महसूस हो रही,
उम्मीद वाली मीनार फिर से।।
आँख से नींद का यूँ रूठ जाना,
बीच मे सपनों का टूट जाना;
खुद से ही अनबन लगती है,
मन लगता है बीमार फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-38)
16-02-2017
दिल के दरमियाँ दीवार फिर से।
झुकती सी महसूस हो रही,
उम्मीद वाली मीनार फिर से।।
आँख से नींद का यूँ रूठ जाना,
बीच मे सपनों का टूट जाना;
खुद से ही अनबन लगती है,
मन लगता है बीमार फिर से।
-विजय वर्मा
(फिर से-38)
16-02-2017
फिर से
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
on
4:23 PM
Rating:
No comments: