कैसा हो गया मेरा गाँव

कैसा हो गया मेरा गाँव
सड़क के मायाजाल में गुम है प्यार की पगडंडी
दिल का दरवाजा बंद किए है मतलब की कुंजी
तेज धुप है गरम हवा है कहीं न दिखता छांव
कैसा हो गया मेरा गाँव
रमई का सिरदर्द यही पानी कैसे रोके
मगरू प्रधान का बहुत ख़ास उसको कैसे टोंके
चला रहे सब एक दूजे पर अपने अपने दाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव
पक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
आपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर
घायल है मखमली सतह पर जाने क्यों हर पाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव
सड़क के मायाजाल में गुम है प्यार की पगडंडी
दिल का दरवाजा बंद किए है मतलब की कुंजी
तेज धुप है गरम हवा है कहीं न दिखता छांव
कैसा हो गया मेरा गाँव
रमई का सिरदर्द यही पानी कैसे रोके
मगरू प्रधान का बहुत ख़ास उसको कैसे टोंके
चला रहे सब एक दूजे पर अपने अपने दाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव
पक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
आपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर
घायल है मखमली सतह पर जाने क्यों हर पाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
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4:55 AM
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अब शहरीपन आ गया है गाँव में भी ..
ReplyDeleteगाँव का सरल स्वरूप हज़म कर गयी आधुनिकता।
ReplyDeleteघायल है मखमली सतह पर जाने क्यों हर पाँव..
ReplyDeleteshaandaar prastuti !
पक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
ReplyDeleteआपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर ...
ये तो पूरे देश का हाल है ... सब आधुनिकवाद के शिकार हैं ...
यही बात तो समझ नहीं आती है, वर्मा जी क्यों हो रहा ऐसा दिल की बात कह दी आपने, अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteगाँव तो अब नाम के रह गये है
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है
वाकई ... कैसा हो गया मेरा गाँव.... सच में ... अभी भी याद आता है दादी का घर .... काश मैं कभी अपने बेटे को वैसा घर वैसा गाँव दिखा सकूँ ... :(
ReplyDeleteपक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
ReplyDeleteआपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर
घायल है मखमली सतह पर जाने क्यों हर पाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव...
विजय जी गाँव अब प्रगति के मार्ग पर है और आप शिकायत कर रहे हैं .....?
हाँ वो पहले सा कुछ नहीं रहा अब .....
बस उसी की कमी खलती है ...
गाँव अब गाँव सा नहीं लगता .....
सुंदर भाव .....!!
गाँव की व्यथा-कथा है
ReplyDeleteरमई वाकई दुखी है
गाँव तो वहीँ हैं, पर उनकी सोंधी खुशबू खो रही है..अच्छी कविता..बधाई.
ReplyDelete_________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
विजय बाबू... तरक्की के नाम पर गाँव का मासूमियत छिनने वाले से अब कौन पूछे कि तरक्की किसका हुआ है और कौन आज भी दो जून का रोटी के लिए नरेगा और मनरेगा का सपना पर धोखा खा रहा है... बहुत बढ़िया बरनन है!!
ReplyDeleteसच मे देखते ही देखते कितना कुछ बदल गया कितनी हैरानी होती है कि हम केवल मूक दर्शक ही बने रह गये। वो सरल सुन्दर जीवन हम से छिन गया। अच्छी लगी रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteहाँ ! सच ही कहा ....कैसा हो गया है हमारा गाँव .... अब पहले वाली कोई बात ही नहीं रह गयी ... निराशा ही होती है ...... यथार्थपरक .. सुन्दर रचना .. शुभकामना..
ReplyDeleteVermaji ,
ReplyDeleteSach me ab " Aha Gramya jeevan bhee kya hai ?" Vali baaten kahan raheen?Vastu -Sthiti ka EXRAY hai yah kavita.
bahut umda likha hai aapne..
ReplyDeleteअब गाँव मैं पहले जैसी अहेजता और सरलता कहाँ ...शहरीपन ने अब कुछ लील लिया है ...सुंदर रचना
ReplyDeleteचलते -चलते पर भी आपका स्वागत है ,
पक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
ReplyDeleteआपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर
गांव भी तो तरक्की की राह पर है उनका भी शहरीकरण हो रहा है। अच्छा लिखा है
गाँव तो अब नाम के रह गये है
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है
पक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
आपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर
ये तो पूरे देश का हाल है ... सब आधुनिकवाद के शिकार हैं ...
वाकई ... कैसा हो गया मेरा गाँव.... सच में ... अभी भी याद आता है
हरियाली शीतलता शोषित करती शहरी सोच
ReplyDeleteवाह अदभुत चित्रण मेरा गांव भी ऐसा ही हो गया है
पक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
ReplyDeleteआपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर
घायल है मखमली सतह पर जाने क्यों हर पाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव
bahoot sahi kaha aapne..... bas sab aadhunikata aur fashion le dooba. fir bhi abhi shaharo ke mukabale to pyar muhabbat jyada hi hai.
सड़क के मायाजाल में गुम है प्यार की पगडंडी!
ReplyDeleteसुन्दर पंक्ति!
कैसा हो गया मेरा गाँव , यह एहसास बहुत कुछ कहता है ... यहीं से शायद सहेजने योग्य सुन्दर भावों को पुनः जीने का मार्ग प्रशस्त होगा!
बहुत अच्छी कविता है भाई।
ReplyDeleteवर्तमान परिस्थितियों पर अपने गांव-परिवेश के संबंध में बहुत दिनो बाद अच्छी कविता पढ़ने को मिली।
बहुत अच्छा, शब्दों में भावनाएं भरने की अद़भुत कला। आपने हमें भी अपने गांव की यादें ताजा करा डाली। हमें तो लगता है कि अब शहरों से अधिक बुरी स्थिति गांवों की हो गयी है। शहरों से तो हमने कभी कोई अपेक्षा ही नहीं रखी, इसलिए इसका बदलाव हमें व्यथित नहीं करता। लेकिन गांव शब्द मन में आते हीं लोगों का प्यार, चाचा-दादा-काका.. अनगिनत रिश्तें वह भी बिना किसी जाति-पाति के, खेत-खलिहान, सबका सबके घरों तक आना-जाना, ठंड के दिनों में एक साथ बैठकर आग सेंकना आदि बातें ताजी हो जाती हैं। पर, अब यह बातें अब पुरानी हो चली है। इस समय जब भी गांव जाता हूं, शहरों से अधिक रिजर्व लोग मिलते हैं। कुटनीतिक चालें, राजनीति सबकुछ गांव के अंदर समाहित हो गयी है और गांववासियों का आपसी प्यार कही दूर छूट चला है, छूटता ही जा रहा है।
ReplyDeleteआपने हमारे दिल की बात उन तक पहुंचाने की जो दुआ मांगी- उसके लिए आपका आभारी हूं।
कैसा हो गया मेरा गाव ........अब गाव ,गाव जैसे कहा रहे !पहले जब गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर जाते थे उन दिनों कपाल ,गाव में बिताये दिन आज भी जेहन में है!
ReplyDeletejis aspect se aapne ganw ko chitrit kiya hai us aspect se jab bhi dekhta hun to ganw ke saharikaran se nafrat hoti hai..achhi rachna..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत. मजा आगया पढ़कर. शुक्रिया.
ReplyDelete---
कुछ ग़मों के दीये
Bahut hi acchi rachna. Sach me har ek gaon ka yahi haal hai aajkal.
ReplyDeletesundar rachna badhai vermaji
ReplyDeleteविजय जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से कल और आज को उभरती पोस्ट ....ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं -
"पक्के घर हो गए सभी इन्सान हुआ पत्थर
आपस में संबाद नहीं बाकी सब कुछ बेहतर
घायल है मखमली सतह पर जाने क्यों हर पाँव
कैसा हो गया मेरा गाँव"
सड़क के मायाजाल में गुम है प्यार की पगडंडी
ReplyDeleteदिल का दरवाजा बंद किए है मतलब की कुंजी
तेज धुप है गरम हवा है कहीं न दिखता छांव
कैसा हो गया मेरा गाँव
..ek tees see uthti hai gaon ke aaj ke haalaton ke dekh..
bahut achhi saarthak rachna ke liye aabhar
अति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteSuperb.
ReplyDeleteSuperb.
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