कैसे बिसरी

मोरे मन की बतिया सुनके मोहे पागल समझके मत हंस री
तुहका कुछ याद नहीं न सही मोरे मनमीत की ई नगरी
देखब कब तक लईके घुमबो सिर पर मोरे यादन की गठरी
कबहू तो कोइ ठोकर लगिहे जब ई गठरी जाइहे बिखरी
गठरी बिखरी तो कहा मानो जिनगी जहा बा जाई ठहरी
दिनवा के न मनवा में चैन रही रतिया अखिया में बहुत अखरी
भूलल बतिया बहु याद आईहे बतिया जिनमे थी घुली मिसरी
लारिकैयाँ कै यारी बतावा तुही मनवा में से कैइसे बिसरी
विजय कुमार वर्मा
तुहका कुछ याद नहीं न सही मोरे मनमीत की ई नगरी
देखब कब तक लईके घुमबो सिर पर मोरे यादन की गठरी
कबहू तो कोइ ठोकर लगिहे जब ई गठरी जाइहे बिखरी
गठरी बिखरी तो कहा मानो जिनगी जहा बा जाई ठहरी
दिनवा के न मनवा में चैन रही रतिया अखिया में बहुत अखरी
भूलल बतिया बहु याद आईहे बतिया जिनमे थी घुली मिसरी
लारिकैयाँ कै यारी बतावा तुही मनवा में से कैइसे बिसरी
विजय कुमार वर्मा
कैसे बिसरी
Reviewed by VIJAY KUMAR VERMA
on
11:22 AM
Rating:

बहुत अच्छा ,लगे रहो
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुती के लिये आपका आभार
खुशखबरी
हिन्दी ब्लाँग जगत के लिये ब्लाँग संकलक चिट्ठाप्रहरी को शुरु कर दिया गया है । आप अपने ब्लाँग को चिट्ठाप्रहरी मे जोङकर एक सच्चे प्रहरी बनेँ , कृपया यहाँ एक चटका लगाकर देखेँ>>
राऊर बात निमन लागल बा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteभूलल बतिया बहु याद आईहे बतिया जिनमे थी घुली मिसरी
ReplyDeleteलारिकैयाँ कै यारी बतावा तुही मनवा में से कैइसे बिसरी
....बेहतरीन अभिव्यक्ति....अपनी बोली में और भी शानदार...बधाई.
bhojpuri mein ghazal padhkar man prafilit ho gaya..........
ReplyDeletebadhaiya,,,,,,,,